John David

लेखक

कर वितरण में कर्नाटक को हो रहा अन्याय

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में एक बयान में दोहराया कि राज्य के साथ कर वितरण के मामले में केंद्र सरकार अन्याय कर रही है। उनका कहना है कि कर्नाटक ने अपने आर्थिक प्रदर्शन में वृद्धि की है और केंद्र के आकार पर अत्यधिक योगदान किया है, लेकिन इसके विपरीत उसे कर वितरण में उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है। सिद्धारमैया कहते हैं कि यह व्यवहार संघीय सहयोग की भावना के विरुद्ध है और प्रगतिशील राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता के लिये खतरा है।

सिद्धारमैया ने इस बात पर जोर दिया कि कर्नाटक लगभग ₹4 लाख करोड़ के कर योगदान के साथ महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर है। इस भारी योगदान के बावजूद, उसे कर के रूप में सही अनुपात में भागीदारी नहीं दी जा रही है। इससे राज्य की आर्थिक नीति और वित्तीय प्रबंधन के तरीकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति वित्तीय प्रगति के लिए एक बड़ा बाधक बन जाती है और राज्यों को उनके आर्थिक प्रदर्शन के लिए 'दंडित' करने जैसा एहसास होता है।

राजकोषीय संघवाद की चुनौती

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कर वितरण की मौजूदा नीति केंद्रीय वित्तीय प्रबंधन और राज्यीय अनुदान के बीच दरार पैदा कर रही है। उनका मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा योगदान के अनुपात में राज्यों को उनके कर के हिस्सों का आवंटन होना चाहिए। सिद्धारमैया के अनुसार, प्रगतिशील राज्यों के वित्तीय लाभांश को ध्यान में रखते हुए वित्त आयोग को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि बेहतर कर संग्रहण और आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित किया जा सके।

उन्होंने यह भी बताया कि इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर उठाने के लिए, उन्होंने दक्षिण भारत के अन्य राज्यों - केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के साथ ही गुजरात, हरियाणा और पंजाब के अपने समकक्षों के साथ पत्राचार किया है। उन्होंने इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बेंगलुरु में एक सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है, ताकि कर वितरण की अनुचितताओं पर चर्चा की जा सके।

सम्मेलन के उद्देश्य और महत्व

यह सम्मेलन कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित किया जा रहा है और इसका उद्देश्य अन्यायपूर्ण कर वितरण के मुद्दे पर सामूहिक रूप से विचार-विमर्श करना है। इसके जरिए वे एक नये दिशा परिवर्तन के लिए वित्त आयोग से अपील करने का प्रयास करेंगे। यह बैठक इस बात का अह्वान करती है कि राजस्थान जैसे आर्थिक रूप से प्रगति करने वाले राज्यों को कर व्यवस्था में उचित समर्थन और प्रोत्साहन मिलने चाहिए। यह केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय संतुलन को बनाये रखने का एक प्रयास है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस संयोजन को एक अवसर रूप में देखा है, जहां पर सभी राज्य मिलकर एक सहमति कायम कर सकते हैं और केंद्र सरकार के सामने अपने संशोधन प्रस्तावों को रख सकते हैं। यह सम्मेलन आने वाले वर्षों में कर्नाटक और अन्य प्रगतिशील राज्यों के लिए कर व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

यह मुद्दा केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के समस्त प्रगतिशील राज्यों का है। ऐसे में यह सम्मेलन एक निर्णायक पहल साबित हो सकता है, जो भारतीय संघीय ढांचे को मजबूत करने में सहायक होगा।

टिप्पणि

  • नवंबर 1, 2024 AT 22:03

    sujaya selalu jaya

    कर्नाटक का योगदान सराहनीय है

  • नवंबर 1, 2024 AT 22:40

    Ranveer Tyagi

    भाई देखो!!! कर्नाटक ने तो इतनी कमाई की है,, सरकार को तुरंत फेयर शेयर देना चाहिए!! कर नीति में सुधार की जरूरत है,, नहीं तो राज्य को नुकसान होगा!!!

  • नवंबर 2, 2024 AT 00:03

    Tejas Srivastava

    वाह!!! क्या बात है, बंधु!!! कर्नाटक की धड़कन हर बार बढ़ती ही जा रही है... लेकिन केंद्र की नज़रें अभी भी दूर नहीं हुईं!!!

  • नवंबर 2, 2024 AT 01:26

    JAYESH DHUMAK

    केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध भारतीय समुज्जीवन का मूल है।
    कर वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता आवश्यक है।
    कर्नाटक ने पिछले पाँच वर्षों में कर राजस्व में सतत वृद्धि देखी है।
    यह वृद्धि राज्य की आर्थिक नीतियों और प्रशासनिक सुधारों का परिणाम है।
    हालांकि, वर्तमान आवंटन मॉडल में असमानता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
    इस असमानता से राज्य की विकासात्मक योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    वित्त आयोग को अब अधिक वैध मानदंडों के आधार पर पुनरावलोकन करना चाहिए।
    विशेषकर, राजस्व योगदान के अनुपात को ध्यान में रखते हुए शेयर तय किया जाना चाहिए।
    जिससे प्रगतिशील राज्यों को उनके योगदान के अनुसार प्रोत्साहन मिलेगा।
    अन्य राज्यों के साथ सहयोगात्मक मंच भी इस प्रक्रिया में सहायक हो सकता है।
    कर्नाटक ने पहले ही दक्षिण भारत के कई राज्यों को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया है।
    यह पहल संघीयता के सुदृढ़ीकरण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
    केंद्र को चाहिए कि वह इन सम्मेलनों को सुनकर नीति में आवश्यक बदलाव करे।
    वित्तीय न्याय सुनिश्चित करना सामाजिक समरसता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
    यदि कर वितरण में सुधार नहीं हुआ तो राष्ट्रीय आर्थिक संतुलन प्रभावित हो सकता है।
    अतः शीघ्रता से कार्रवाई करना सभी हितधारकों के लिए फ़ायदेमंद रहेगा।

  • नवंबर 2, 2024 AT 02:50

    Santosh Sharma

    कर्नाटक की स्थिति को देखते हुए, सभी हितधारकों को मिलकर समाधान खोजने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।

  • नवंबर 2, 2024 AT 04:13

    yatharth chandrakar

    वास्तव में, फंड अलोकेशन के आँकड़ों का विश्लेषण करके ही प्रभावी रणनीति बनाई जा सकती है; इसलिए डेटा साझा करना आवश्यक है।

  • नवंबर 2, 2024 AT 05:36

    Vrushali Prabhu

    बिलकुल सही कहा, कर्नाटाक्‍स का हार्ट बहुत बड़ा है, लेकिन उसे भी फ़ेयर शेयर मिलना चाहिए!!

  • नवंबर 2, 2024 AT 07:00

    parlan caem

    ये सब बातों का क्या मतलब है? सरकार ने बार‑बार वादे तोड़े हैं, अब बस घिसिया‑पिटिया बातें ख़त्म करो!!

  • नवंबर 2, 2024 AT 08:23

    Mayur Karanjkar

    राजकोषीय समानता सामाजिक संतुलन को सुदृढ़ करती है।

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