मनन चक्रवर्ती

लेखक

कर वितरण में कर्नाटक को हो रहा अन्याय

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में एक बयान में दोहराया कि राज्य के साथ कर वितरण के मामले में केंद्र सरकार अन्याय कर रही है। उनका कहना है कि कर्नाटक ने अपने आर्थिक प्रदर्शन में वृद्धि की है और केंद्र के आकार पर अत्यधिक योगदान किया है, लेकिन इसके विपरीत उसे कर वितरण में उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है। सिद्धारमैया कहते हैं कि यह व्यवहार संघीय सहयोग की भावना के विरुद्ध है और प्रगतिशील राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता के लिये खतरा है।

सिद्धारमैया ने इस बात पर जोर दिया कि कर्नाटक लगभग ₹4 लाख करोड़ के कर योगदान के साथ महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर है। इस भारी योगदान के बावजूद, उसे कर के रूप में सही अनुपात में भागीदारी नहीं दी जा रही है। इससे राज्य की आर्थिक नीति और वित्तीय प्रबंधन के तरीकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति वित्तीय प्रगति के लिए एक बड़ा बाधक बन जाती है और राज्यों को उनके आर्थिक प्रदर्शन के लिए 'दंडित' करने जैसा एहसास होता है।

राजकोषीय संघवाद की चुनौती

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कर वितरण की मौजूदा नीति केंद्रीय वित्तीय प्रबंधन और राज्यीय अनुदान के बीच दरार पैदा कर रही है। उनका मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा योगदान के अनुपात में राज्यों को उनके कर के हिस्सों का आवंटन होना चाहिए। सिद्धारमैया के अनुसार, प्रगतिशील राज्यों के वित्तीय लाभांश को ध्यान में रखते हुए वित्त आयोग को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि बेहतर कर संग्रहण और आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित किया जा सके।

उन्होंने यह भी बताया कि इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर उठाने के लिए, उन्होंने दक्षिण भारत के अन्य राज्यों - केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के साथ ही गुजरात, हरियाणा और पंजाब के अपने समकक्षों के साथ पत्राचार किया है। उन्होंने इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बेंगलुरु में एक सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है, ताकि कर वितरण की अनुचितताओं पर चर्चा की जा सके।

सम्मेलन के उद्देश्य और महत्व

यह सम्मेलन कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित किया जा रहा है और इसका उद्देश्य अन्यायपूर्ण कर वितरण के मुद्दे पर सामूहिक रूप से विचार-विमर्श करना है। इसके जरिए वे एक नये दिशा परिवर्तन के लिए वित्त आयोग से अपील करने का प्रयास करेंगे। यह बैठक इस बात का अह्वान करती है कि राजस्थान जैसे आर्थिक रूप से प्रगति करने वाले राज्यों को कर व्यवस्था में उचित समर्थन और प्रोत्साहन मिलने चाहिए। यह केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय संतुलन को बनाये रखने का एक प्रयास है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस संयोजन को एक अवसर रूप में देखा है, जहां पर सभी राज्य मिलकर एक सहमति कायम कर सकते हैं और केंद्र सरकार के सामने अपने संशोधन प्रस्तावों को रख सकते हैं। यह सम्मेलन आने वाले वर्षों में कर्नाटक और अन्य प्रगतिशील राज्यों के लिए कर व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

यह मुद्दा केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के समस्त प्रगतिशील राज्यों का है। ऐसे में यह सम्मेलन एक निर्णायक पहल साबित हो सकता है, जो भारतीय संघीय ढांचे को मजबूत करने में सहायक होगा।

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