मनन चक्रवर्ती

लेखक

जम्मू-कश्मीर: राजनीतिक आकांक्षाओं की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है, जब नई कैबिनेट ने सर्वसम्मति से राज्य की स्थिति बहाल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। 2019 में केन्द्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 का निरसन किए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर राज्य का दर्जा खो बैठा था और उसे केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित कर दिया गया था। इस परिवर्तन ने न केवल क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति को बदल दिया, बल्कि इसके सामाजिक और आर्थिक स्वरूप पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा।

इस नई सरकार की पहली बैठक में लिए गए इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि राज्य की स्थिति की बहाली कहीं न कहीं स्थानीय जनता की आत्म-प्रशासन और स्वायत्तता की आकांक्षाओं को मुख्य धारा में लाना चाहता है। केन्द्रीय सरकार द्वारा विधान सभा भंग करने के बाद से जम्मू-कश्मीर में ऊर्जा, रोजगार और विकास के प्रमुख मुद्दे लंबे समय से विमर्श में थे।

अनुच्छेद 370 का महत्व

अनुच्छेद 370 के निरसन ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाली संवैधानिक धारा तोड़ दी थी। इसके प्रभाव के तहत, राज्य के पास अपना संविधान और स्वायत्तता थी, जो केन्द्र सरकार के कुछ ही विषयों में हस्तक्षेप के अधीन थी। सम्प्रदायिक शांति और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 370 का ऐतिहासिक महत्व भी है।

हालाँकि, केंद्र सरकार के इस कदम से कई लोगों में निराशा और आशंकाएँ थीं, जो इस धारणा को मजबूत करती हैं कि क्षेत्र ने अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान खो दी है। प्रस्ताव को मंजूरी देने का विचार इस दिशा में एक पहल है कि पुनः जम्मू और कश्मीर अपनी पुरानी स्थिति और अधिकारों को पा सके।

राजनीतिक संतुलन और लोगों की आशाएँ

जम्मू-कश्मीर की यह नई पहल स्वयं को एक स्वायत्त इकाई के रूप में फिर से स्थापित करने का संकेत देती है। इस परिवर्तन के पीछे का मुख्य उद्देश्य स्थानीय जनता की राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को संतुष्ट करना है। क्षेत्र की जनता में यह अभिलाषा रही है कि उसे अधिक स्वायत्तता प्राप्त हो, ताकि वह अपने विकास और नीति निर्माण में अधिक योगदान दे सकें।

हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अंतिम निर्णय के बिना यह प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती, लेकिन इस पहल से निश्चित रूप से केंद्र और राज्य के बीच एक संवाद स्थापित होगा। इस प्रकार के संवाद से यह आशा की जाती है कि देश के बड़े और विविधतापूर्ण राजनीतिक संसार में जम्मू-कश्मीर को उसका उचित स्थान मिलेगा।

स्थानीय चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया

राज्य की स्थिति की बहाली के प्रस्ताव से जुड़े निर्णय ने स्थानीय चुनावों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के महत्व को भी उजागर किया है। पिछले कुछ सालों में, केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति ने चुनावी प्रक्रिया और स्थानीय प्रशासनिक ढांचे में जटिलताएँ उत्पन्न की थीं।

स्थानीय चुनावों के माध्यम से जनता की आवाज़ को अधिक प्रभावी रूप से व्यक्त किया जा सकता है। इस निर्णय से 'स्वयं द्वारा शासन' के सिद्धांत को अधिक बल मिलेगा और स्थानीय शासन में जनता की सक्रिय भागीदारी देखी जा सकेगी। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर में स्थाई शांति और विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी।

संभावित भविष्य के दिशा-निर्देश

भले ही यह प्रस्ताव एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन यह केंद्र सरकार की सहमति के बिना अधूरा है। भारत सरकार के साथ अधिक वार्ता और विचार-विमर्श की आवश्यकता है ताकि राज्य की स्थिति की बहाली की प्रक्रिया को पूरी तरह से लागू किया जा सके।

आगे चलकर, राज्य को उसके पहले जैसी स्थिति में लाने के लिए न केवल राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखना होगा, बल्कि वहां की जमीनी स्थिति, आर्थिक विकास, सांप्रदायिक समरसता, और जन सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी विशेष ध्यान देना होगा। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से क्षेत्र की जनता की उम्मीदें पूरी हों और उनकी जीवन स्तर में सुधार हो।

निष्कर्ष

जम्मू-कश्मीर कैबिनेट का यह निर्णय वास्तव में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मील का पत्थर है। इससे क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य में एक नई जागृति आई है जो स्वायत्तता और आत्म-निर्णय की अवधारणा को मजबूत करती है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयास न केवल लोगों की उम्मीदों को बल देंगे, बल्कि भारतीय संघीय प्रणाली में एक सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त करेंगे। जबकि केंद्र सरकार की अंतिम मंजूरी अभी बाकी है, लेकिन इस पहल ने एक नई उम्मीद का संचार कर दिया है। यह संचार ही भविष्य के बदलते संदर्भों के लिए एक मजबूत आधार बनेगा।

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