रेपो दर – समझें इसका महत्व और प्रभाव
जब बात आती है रेपो दर, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक उधार पर तय की जाने वाली ब्याज दर. इसे अक्सर रिपोरेट कहा जाता है, यह मौद्रिक नीति का मुख्य हथियार है। RBI, भारत का केंद्रीय बैंक, जो कीमतों को स्थिर रखने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नीति बनाता है इस दर को बदल कर बाजार में तरलता को नियंत्रित करता है। इस प्रकार, रेपो दर मौद्रिक नीति को नियंत्रित करती है (लेखक‑निर्धारित त्रिपक्षीय संबंध)।
मुख्य घटक और उनके बीच का संबंध
रेपो दर सीधे मौद्रिक नीति, एक व्यापक ढांचा जो मुद्रा आपूर्ति, ब्याज दरें और आर्थिक विकास को निर्देशित करता है से जुड़ी होती है। जब मुद्रास्फीति बढ़ती है, RBI अक्सर रेपो दर बढ़ा कर कीमतों को ठंडा करने की कोशिश करता है; इसके विपरीत, मंदी के दौरान दर घटाकर निवेश को प्रोत्साहित करता है। यही कारण है कि मुद्रास्फीति रेपो दर को प्रभावित करती है। साथ ही, बैंकिंग सेक्टर, वित्तीय संस्थान जो जमा, उधार और भुगतान सेवाएँ प्रदान करते हैं रेपो दर के अनुसार अपने उधार‑वितरण को समायोजित करता है। उच्च रेपो दर का अर्थ है बैंकों की क्रेडिट लागत बढ़ना, जिससे लोन की ब्याज दरें भी उँची हो सकती हैं। इस प्रक्रिया में, बैंकिंग सेक्टर रेपो दर के अनुसार अपने नकद संग्रह को समायोजित करता है।
रेपो दर की छोटी‑छोटी धुंधली चालें भी आम जनता की जेब पर असर डालती हैं। जब दर घटती है, व्यक्तिगत लोन, होम लोन और कार लोन की लागत कम होती है, जिससे घर‑खरीद या वाहन‑खरीद के इरादे वाले लोग तुरंत फायदा उठाते हैं। दूसरी ओर, यदि दर बढ़ती है, तो बचत खातों पर मिलने वाला ब्याज भी आम तौर पर बढ़ जाता है, जिससे बचत करने वालों को प्रेरणा मिलती है। इस द्विपक्षीय प्रभाव को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह आपकी वित्तीय योजना के कई पहलुओं को दिशा देता है।
रेपो दर केवल एक संख्या नहीं, बल्कि एक संकेतक है जो अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की झलक दिखाता है। यदि आप निवेशक हैं, तो इस दर में बदलाव बॉण्ड, इक्विटी या म्यूचुअल फंड की रिटर्न को सीधे प्रभावित कर सकता है। यदि आप छोटा व्यवसाय चलाते हैं, तो रेपो दर में परिवर्तन आपके कार्यशील पूंजी पर निर्भरता, क्रेडिट की उपलब्धता और लागत को पुनः आकार दे सकता है। इसलिये, रेपो दर को नज़र में रखकर आप अपने वित्तीय निर्णयों को अधिक समझदारी से ले सकते हैं।
नीचे दी गई सूची में हम ऐसे लेखों का संग्रह लाए हैं जो रेपो दर से जुड़ी विभिन्न पहलुओं—वर्तमान दर बदलाव, RBI की नीति घोषणा, मुद्रास्फीति का विश्लेषण, बैंकिंग सेक्टर की प्रतिक्रिया और उपभोक्ता स्तर पर असर—पर गहराई से चर्चा करती हैं। इन लेखों को पढ़कर आप न केवल वर्तमान आर्थिक माहौल को समझ पाएँगे, बल्कि भविष्य के वित्तीय निर्णयों में भी बेहतर तैयारी कर सकेंगे।
RBI का अक्टूबर 2025 MPC: रेपो दर 5.50% पर स्थिर, जीडीपी अनुमान 6.8% तक बढ़ा
RBI ने 1 अक्टूबर को रेपो दर 5.50% पर स्थिर रखी, GDP बढ़ोतरी को 6.8% तक बढ़ाया और महंगाई का लक्ष्य 2.6% किया, जिससे आर्थिक माहौल में नई दिशा मिली।