मनन चक्रवर्ती

लेखक

एनसीपी में अन्दरूनी खींचतान: शरद पवार के गुट में लौटे चार नेता

महाराष्ट्र की राजनीतिक हलचल एक बार फिर तेज हो गई है। 17 जुलाई, 2024 को एनसीपी के चार प्रमुख स्थानीय नेताओं ने अजित पवार के गुट से इस्तीफा देकर शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी में वापसी की। इन नेताओं में अजित गवहणे, जो कि अजित पवार गुट के पिंपरी-चिंचवड़ इकाई के प्रमुख थे, यश सने, छात्र संघ प्रमुख पिंपरी-चिंचवड़, और पूर्व पार्षद राहुल भोसले और पंकज भालेकर शामिल हैं।

अजित पवार गुट को बड़ा झटका

यह घटना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पिछले लोकसभा चुनाव परिणामों के सीधे बाद हुई है, जहां अजित पवार के गुट ने केवल एक सीट जीती थी जबकि शरद पवार के गुट ने 10 में से 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। मुद्दा केवल सीट जीतने का नहीं है, बल्कि यह भी है कि पिंपरी-चिंचवड़ क्षेत्र जो एनसीपी का गढ़ माना जाता है, वहां से भी नेताओं का इस्तीफा गंभीर चिंता का विषय है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि एनसीपी का विभाजन जुलाई 2023 में हुआ था जब अजित पवार ने अपने कुछ विधायकों के साथ मिलकर महाराष्ट्र की महायुति गठबंधन सरकार का हिस्सा बनने का निर्णय लिया था। इस महायुति में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट भी शामिल है।

शरद पवार की बढ़ती लोकप्रियता

शरद पवार के नेतृत्व में वापस आने वाले नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि पार्टी की असली पहचान शरद पवार के साथ ही है। अजित गवहणे ने कहा कि उन्होंने पिंपरी-चिंचवड़ में जनता की सेवा में शरद पवार के मार्गदर्शन में बेहतर तरीके से काम किया है और अब वे उसी मार्ग पर लौट आए हैं। वहीं, यश सने ने कहा कि वे हमेशा से शरद पवार की विचारधारा के प्रति निष्ठावान रहे हैं।

इसके अलावा, राहुल भोसले और पंकज भालेकर ने भी साफ तौर पर माना कि शरद पवार की लोकप्रियता और उनकी कार्यशैली के कारण उन्होंने वापसी की है। यह अब साफ हो गया है कि शरद पवार की पकड़ पार्टी में अभी भी मजबूत है और उनकी लोकप्रियता औऱ विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं आई है।

भाजपा के लिए चुनौती

इस घटनाक्रम से बीजेपी के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। महायुटी गठबंधन में अजित पवार का अहम रोल था। अगर आज उनके प्रमुख सहयोगी नेता इस्तीफा देकर विपक्षी गुट में जा रहे हैं, तो इससे सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े होते हैं। इसके अलावा, यह भी संदेश जा रहा है कि अजित पवार का गुट लोकसभा चुनावों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाया है और पिंपरी-चिंचवड़ जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी जनाधार खोता नजर आ रहा है।

एनसीपी का अंदरूनी संघर्ष

आगामी दिनों में एनसीपी के अंदरूनी संघर्ष में और भी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। जहां एक ओर शरद पवार गुट को लगातार समर्थन मिल रहा है, वहीं अजित पवार का गुट अपनी पकड़ को मजबूत करने के प्रयासों में लगा हुआ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में एनसीपी के भविष्य की दिशा क्या होगी और महाराष्ट्र की राजनीति में इसके क्या प्रभाव पड़ेंगे।

आखिरकार, इस घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है कि एनसीपी के अंदरूनी हेरफेर और खींचतान का दौर जारी है। यह सत्ताधारी गठबंधन के लिए एक चेतावनी भी है कि उन्हें भीतर के मतभेदों और असंतोष को दूर करने की दिशा में तत्परता से काम करना होगा।

अगले कदम

अब देखना यह है कि अजित पवार इस स्थिति से कैसे निपटेंगे। क्या वे अपने गुट को मजबूत करने के लिए कुछ नए कदम उठाएंगे या फिर और भी नेता उनके गुट को छोड़कर शरद पवार के खेमे में जायेंगे? यह आने वाले समय में स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन एक बात तो तय है कि इस अन्दरूनी खींचतान ने महाराष्ट्र की राजनीति को और भी गर्मा दिया है।

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