जब साइक्लोन मोंथा ने तटीय आंध्र प्रदेश के पास अपनी ताकत खो दी, तो उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में बारिश का बवंडर छा गया। देवरिया जिले में 24 घंटे में सटीक 136 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई — ये आंकड़ा किसी आम बारिश का नहीं, बल्कि एक आपदा का है। बिजली के 300 से अधिक खंभे उखड़ गए, अस्पतालों में अंधेरा, ट्रेनें फंसीं, स्कूल बंद — और ये सब तब हुआ जब लोग सो रहे थे। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 31 अक्टूबर से 1 नवंबर तक गोरखपुर, देवरिया, महाराजनगर, कुशीनगर, बलिया और आसपास के जिलों के लिए भारी से अत्यधिक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है।
देवरिया में बाढ़ जैसा माहौल
रात के 12 बजे के बाद गोरखपुर विभाग में तूफानी बारिश ने सब कुछ बहा दिया। देवरिया में जहां 136 मिमी बारिश हुई, वहां महाराजी देवराह बाबा मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल जैसे महत्वपूर्ण स्थान बिना बिजली के पड़ गए। इंवर्टर्स खाली हो गए, बैकअप जनरेटर फेल हो गए। सरकारी कार्यालय, बस डिपो, बाजार — सब जलमग्न। लोगों ने बताया कि रास्तों पर बिजली के तार लटक रहे थे, जैसे बिजली के नागिन बन गए हों।
ट्रेनों का बर्बाद होना
उत्तर प्रदेश के रेल नेटवर्क ने इस बार अपनी बेहतरी का नमूना नहीं दिखाया। 18 से अधिक ट्रेनें रोक दी गईं। वैशाली एक्सप्रेस गोरखपुर जंक्शन पर फंसी, पूर्वांचल एक्सप्रेस कांटी के पास, लखनऊ-पटनापुत्र एक्सप्रेस को शॉर्ट टर्मिनेट करने की संभावना। 15104/15103 इंटरसिटी एक्सप्रेस भी बतनी जंक्शन पर रुक गई। और जब दो बड़े पेड़ ओवरहेड इलेक्ट्रिफिकेशन (OHE) लाइन पर गिरे, तो कप्तांगनज-पानियावा रूट पर 12 ट्रेनों को रिडायरेक्ट करना पड़ा। चार ट्रेनें पूरी तरह रद्द — 15130, 15129, 05163, 05164। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, ये लाखों यात्रियों की जिंदगी के टुकड़े हैं।
बच्चों के लिए स्कूल बंद, बुजुर्गों के लिए डर
कक्षा 8 तक के सभी स्कूल बंद कर दिए गए। ये फैसला सिर्फ बच्चों को बारिश से बचाने के लिए नहीं, बल्कि बिजली के तारों और उखड़े खंभों के खतरे से बचाने के लिए था। गांवों में लोग बता रहे हैं कि बारिश के बाद रास्ते इतने खराब हो गए कि दोपहर तक बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पा रहे। बुजुर्गों के लिए तो ये दूसरी बार है — पिछले दो साल में तीसरी बार इतनी भारी बारिश। कुछ लोग कह रहे हैं, "अब बारिश नहीं, बल्कि जलवायु आपदा हो रही है।"
मौसम विभाग की चेतावनी: अभी खत्म नहीं हुआ
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 31 अक्टूबर से 1 नवंबर तक देवरिया, गोरखपुर, महाराजनगर, कुशीनगर, बलिया, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, बस्ती, अजमगढ़, घाजीपुर और बांदा जिलों के लिए भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। बिजली के साथ तूफानी हवाएं 30-40 किमी/घंटा की रहेंगी। ये चेतावनी तब भी जारी है जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30 अक्टूबर को बिखरी बारिश और बिजली की उम्मीद है। 1 नवंबर को पूर्वी उत्तर प्रदेश में फिर से बारिश की संभावना, जबकि पश्चिमी हिस्सा सूखा रहेगा। 2 नवंबर को पूरे राज्य में कहीं-कहीं बारिश हो सकती है।
क्या ये बारिश सिर्फ तूफान का नतीजा है?
नहीं। ये सिर्फ मोंथा का नतीजा नहीं है। ये एक नए पैटर्न का हिस्सा है — जहां बंगाल की खाड़ी से उठने वाले तूफान अब सीधे उत्तर प्रदेश के पूर्वी तट तक अपनी नमी ले आते हैं। पिछले 10 सालों में ये तीन बार हुआ है: 2018 में तूफान फानी, 2021 में तूफान यास, और अब 2025 में मोंथा। हर बार देवरिया और गोरखपुर के लोग बिजली और पानी की कमी से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि गंगा के मैदान में जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न बदल रहा है — अब ये अचानक, अत्यधिक और लंबे समय तक चलती है।
आगे क्या होगा?
अब तक के नुकसान का आकलन अभी शुरू नहीं हुआ। लेकिन ये जाना जा रहा है कि बिजली विभाग को कम से कम 72 घंटे का समय लगेगा — अगर मौसम अच्छा रहा तो। रेलवे ने बताया कि OHE लाइन की मरम्मत के लिए 500 मजदूर तैनात किए गए हैं। लेकिन सवाल ये है: अगली बार जब ऐसा होगा, तो क्या तैयारी होगी? क्या बेहतर ड्रेनेज, ट्री कटिंग प्रोग्राम, या बिजली के खंभों को बेहतर फाउंडेशन पर लगाने का निर्णय लिया जाएगा? या फिर हम फिर से बारिश के बाद बिजली के तारों को उठाने के लिए निकलेंगे?
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस बारिश ने कितने लोगों को प्रभावित किया?
अनुमानित रूप से 80 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं — जिनमें देवरिया, गोरखपुर, महाराजनगर और बलिया जैसे जिलों के गांवों के निवासी शामिल हैं। कम से कम 1.2 लाख परिवारों को 24 घंटे से अधिक समय तक बिजली नहीं मिली। ट्रेनों के रद्द होने से लगभग 1.5 लाख यात्री फंसे।
क्या अस्पतालों में आपातकालीन स्थिति थी?
हां। महाराजी देवराह बाबा मेडिकल कॉलेज और देवरिया जिला अस्पताल दोनों बिना बिजली के रहे। डायलिसिस मशीनें, ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर और वैक्सीन रेफ्रिजरेटर्स के लिए बैकअप जनरेटर बेकार हो गए। अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि दो आपातकालीन मामलों में देरी हुई, लेकिन कोई मौत नहीं हुई।
क्या भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस बार सही चेतावनी दी?
हां, विभाग ने 29 अक्टूबर को अपनी चेतावनी जारी कर दी थी — और ये चेतावनी सटीक थी। उन्होंने 31 अक्टूबर से 1 नवंबर तक के लिए भारी बारिश का पूर्वानुमान लगाया, जो सच भी निकला। लेकिन समस्या ये है कि चेतावनी के बाद भी राज्य सरकार की प्रतिक्रिया धीमी रही।
क्या ये बारिश जलवायु परिवर्तन का हिस्सा है?
विशेषज्ञों के अनुसार, हां। पिछले 20 वर्षों में उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में बारिश की तीव्रता 40% बढ़ गई है। बंगाल की खाड़ी के तूफान अब अधिक ऊर्जावान हो रहे हैं, और वे अधिक दूर तक जा रहे हैं। गंगा के मैदान में भूमि का उपयोग बदलने और वनों की कटाई के कारण जल अवशोषण क्षमता घट रही है।
अगली बार ऐसा होने पर क्या करें?
तैयारी की जरूरत है: बिजली के खंभों को जमीन में 50% गहरा लगाना, ओवरहेड लाइनों के आसपास पेड़ों की कटाई, और गांवों में आपातकालीन बैटरी बैंक लगाना। रेलवे को अपनी लाइनों के आसपास बाढ़ नियंत्रण प्रणाली लगानी चाहिए। और सबसे जरूरी — जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन टीमों को स्थायी बनाना।
क्या अब भी बारिश जारी रहेगी?
हां। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 1 नवंबर को पूर्वी उत्तर प्रदेश में फिर से हल्की से मध्यम बारिश की संभावना है। 2 नवंबर को कुछ स्थानों पर बारिश हो सकती है। लेकिन अब तक की बारिश के बाद जमीन भीग चुकी है — इसलिए अगली बारिश भी बाढ़ का खतरा बढ़ा सकती है।
अक्तूबर 31, 2025 AT 00:44
Yogesh Dhakne
बारिश तो हर साल होती है, पर अब तो बिजली के खंभे भी नहीं बचे। किसी ने बस एक बार भी सोचा है कि ये तार गांवों में इतने ऊंचे क्यों लगाए गए? 🤷♂️
अक्तूबर 31, 2025 AT 08:11
Rosy Forte
यहाँ तक कि जलवायु विज्ञान के बारे में बात करने के लिए भी एक एमएससी की आवश्यकता होती है। ये बारिश सिर्फ मोंथा का परिणाम नहीं - ये ग्लोबल वार्मिंग का एक अंश है जिसका असर गंगा के मैदान पर एक असंतुलित जलवायु डायनामिक्स के रूप में दिख रहा है। लोग अभी भी बिजली के खंभों को गलत जगह लगाने की बात कर रहे हैं, जबकि जमीन के जलवायु अवशोषण क्षमता को बहाल करना जरूरी है।
हमारे शहरी नियोजन में जलवायु अनुकूलन की कोई भूमिका नहीं है। यह एक व्यवस्थागत विफलता है। हम जिस तरह से वनों को काट रहे हैं, वहीं बाढ़ के लिए एक अंतर्निहित डिज़ाइन है।
मौसम विभाग ने चेतावनी दी - बहुत अच्छा। लेकिन राज्य सरकारों का अभिगम एक निष्क्रिय भावना है: चेतावनी आए, फिर रात में सो जाएँ, और सुबह बिजली के तार उठाएँ।
यह एक अंतर्निहित अपराध है। नीति निर्माता यहाँ नहीं हैं, वे दिल्ली में हैं, जहाँ हवा भी बिजली के तारों को नहीं उड़ाती।
हम बारिश को आपदा नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखना चाहिए - एक अवसर जिससे हम अपने बुनियादी ढांचे को नए ढंग से डिज़ाइन कर सकें।
हमारे पास टेक्नोलॉजी है, हमारे पास डेटा है, हमारे पास विशेषज्ञ हैं। लेकिन हमारे पास इच्छाशक्ति नहीं है।
यह असहायता एक चयनित असहायता है।
हम अपने बच्चों को बारिश के बाद बिजली के तारों को उठाने के लिए निकलने के लिए तैयार कर रहे हैं।
यह एक अपराध है।
अक्तूबर 31, 2025 AT 22:21
kuldeep pandey
अरे यार, बिजली के तार लटक रहे हैं और लोग सो रहे हैं? अब तो बारिश भी एक ड्रामा हो गई है।
नवंबर 2, 2025 AT 21:46
Hannah John
ये सब बारिश तो सिर्फ एक शुरुआत है… अगले साल जब बारिश होगी तो रेलवे भी बारिश में डूब जाएगा। ये सब चुपचाप चल रहा है… लेकिन जब तुम आंख बंद करोगे तो जो आता है वो तुम्हारे घर में आ जाएगा। वो तो अभी तक बारिश कर रहे हैं… लेकिन अगले साल तो वो आपके घर के छत से आएंगे।
मैंने अपने दादा से सुना था कि 70 के दशक में बारिश तो थी पर बिजली के तार नहीं लटकते थे। अब तो बारिश एक राजनीति है।
क्या तुम्हें पता है कि ये सारे तार किसने लगाए? वो लोग जिनके बेटे अमेरिका में हैं।
मैं बस बता रहा हूँ… तुम जो सोच रहे हो वो सच नहीं है।
नवंबर 4, 2025 AT 05:16
dhananjay pagere
बिजली के खंभे 300+ उखड़े? अच्छा… तो फिर बिजली कंपनी के सीईओ की सैलरी कहाँ जा रही है? 😏
नवंबर 4, 2025 AT 07:19
Saachi Sharma
बच्चों के लिए स्कूल बंद। बिजली के तार लटक रहे। अस्पतालों में अंधेरा। और सरकार का जवाब? चेतावनी जारी कर दी।
नवंबर 5, 2025 AT 13:58
Kaviya A
बारिश तो हो रही है पर लोगों को बचाने का कोई इरादा नहीं… अब तो बारिश भी बाहर आ गई है… बस अब तो देखो कि कौन बचेगा 😭
नवंबर 5, 2025 AT 19:28
bharat varu
हर बार जब बारिश होती है, तो हम सब एक दूसरे को दोष देते हैं। लेकिन अगर हम सब मिलकर एक आपदा प्रबंधन टीम बना दें, तो क्या ये सब बदल जाएगा? चलो शुरू करते हैं - गांव के स्तर पर।
नवंबर 7, 2025 AT 15:18
Nilisha Shah
मैंने इस बारिश के बारे में जिला स्तर पर एक अध्ययन किया है। गंगा के मैदान में भूमि उपयोग के बदलाव ने जल अवशोषण क्षमता को 35% तक कम कर दिया है। इसके अलावा, नदियों के किनारे बसे गांवों में बाढ़ के लिए ड्रेनेज सिस्टम लगभग अनुपलब्ध हैं।
जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करना आसान है, लेकिन जब तक हम निजी भूमि पर बने अवैध निर्माणों को नहीं रोकेंगे, तब तक बारिश का नुकसान बढ़ता रहेगा।
हमें अपने गांवों में बाढ़ नियंत्रण के लिए जल निकासी के लिए जमीनी स्तर पर योजना बनानी होगी।
यह सिर्फ एक तूफान का मामला नहीं है - यह एक निर्माण की असफलता है।
मैं एक गांव के स्तर पर एक नियोजन टीम के साथ काम कर रही हूँ। अगर कोई रुचि हो तो मुझसे संपर्क करें।
नवंबर 7, 2025 AT 22:20
Supreet Grover
अस्पतालों में बैकअप जनरेटर की विफलता एक सिस्टमिक फेलियर है। डायलिसिस मशीनों के लिए अनिवार्य बैटरी बैंक नहीं होना - ये एक जीवन-मृत्यु के मुद्दे को अनदेखा करना है।
हमें आपातकालीन बिजली व्यवस्था के लिए डिस्ट्रीब्यूटेड एनर्जी सिस्टम अपनाना चाहिए - जैसे सोलर बैटरी स्टोरेज इन हाई-रिस्क एरियाज।
यह सिर्फ एक तकनीकी समाधान नहीं है - यह एक नैतिक आवश्यकता है।
नवंबर 9, 2025 AT 12:21
Vijayan Jacob
ये बारिश तो अब हमारे सांस्कृतिक अनुभव का हिस्सा बन गई है - बारिश के बाद बिजली के तार उठाना, बच्चों को स्कूल से नहीं भेजना… ये सब अब एक रिविट है।
लेकिन अगर हम इसे एक आदत बना दें, तो क्या हम इसे एक समस्या नहीं, बल्कि एक जीवन शैली बना देंगे?
नवंबर 10, 2025 AT 11:32
Nitin Srivastava
यह बारिश का एक अवसर है - एक अवसर जिससे हम अपने बुनियादी ढांचे को एक नए दृष्टिकोण से डिज़ाइन कर सकें।
लेकिन जब तक हम अपने लोगों को इस बारे में सोचने के लिए नहीं शिक्षित करेंगे, तब तक यह सिर्फ एक और आपदा बनी रहेगी।
मैं एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बना रहा हूँ - जहाँ लोग अपने जिले के लिए आपदा तैयारी के बारे में बात कर सकें।
क्या कोई शामिल होना चाहेगा?
नवंबर 12, 2025 AT 10:53
Suman Sourav Prasad
बिजली के खंभे उखड़े? अच्छा… तो फिर बिजली कंपनी के लोग भी अपने घरों में बैठे हैं? नहीं? तो फिर उनकी नौकरी क्या है?
हम तो बारिश के बाद तार उठाने के लिए निकलते हैं, लेकिन उनके लिए तो बस एक ट्रक और एक चाय का गिलास है।
मैं बस यही कहना चाहता हूँ - ये सब बहुत बुरा है।