post-image
John David 5 टिप्पणि

जब डॉ. अनिल कुमार, वरिष्ठ रेजिडेंट अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने 4 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रीय नशा विरोधी अभियान 2025नई दिल्ली में अपनी चेतावनी जारी की, तो शहर के कई कोने में यह बात फूट पड़ी कि क्रिस्टल मेथ (चिट्टा) और एलएसडी जैसे ड्रग्स मस्तिष्क को स्थायी रूप से ख़राब कर सकते हैं।

नशे के दिमागी प्रभावों का वैज्ञानिक आधार

डॉ. कुमार ने बताया कि क्रिस्टल मेथ सेवन करने पर दिमाग में डोपामाइन की अचानक बढ़ोतरी होती है। शुरुआती कुछ घंटे में यह ऊर्जा और उत्साह देता है, पर जैसे‑जैसे समय बीतता है, यह स्राव घटता है और नशे की लत बनती है। इसके अलावा, एलएसडी एर्गोट कवक से प्राप्त एक सिंथेटिक हॉलुसिनोजेनिक ड्रग है, जो टेबलेट या जेल जैसी फॉर्म में आती है।

दीर्घकालिक उपयोग से न केवल न्यूरोनल सिग्नल ट्रांसमिशन बाधित होता है, बल्कि ब्रेन डैमेज, मेमोरी लॉस, और न्यूरॉन्स की घिसावट जैसी जटिल समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, लगातार क्रिस्टल मेथ लेने वाले व्यक्तियों में दिमाग की ग्रे मैटर वॉल्यूम में औसतन 12 % कमी देखी गई है।

  • वजन घटना और भूख में कमी
  • नींद में खलल, चिड़चिड़ापन
  • भ्रम, पैनिक अटैक, कभी‑कभी कोमा
  • मेमोरी गैप और कॉग्निटिव डिक्लाइन

नशे के शिकार युवाओं की बदलती उम्र सीमा

पहले जहाँ 16‑17 साल के किशोर नशे के शिकार होते थे, अब 11 साल के बच्चे भी चिट्टा की लत में फंस रहे हैं। मध्य प्रदेश के एक गाँव में 11‑साल का बच्चा मोहित सिंह (निश्चित नाम नहीं) को पुलिस ने 3 किलोग्राम क्रिस्टल मेथ रखने की जाँच में पकड़ा। यह दिखाता है कि नशे की आपूर्ति अब बालिग वयस्कों से ही नहीं, बल्कि युवा वर्ग तक पहुँच रही है।

पोलिस ने बताया कि पिछले वर्ष के मुताबिक 2024 में नशा जप्ति की मात्रा में 28 % की बढ़ोतरी हुई है, जबकि नशा नियंत्रण ब्यूरो (NCB) ने बड़े तस्करों के खिलाफ कई ठोस कार्रवाई की। लेकिन नशे की काली हुई सप्लाई चेन में नशेड़ी स्वयं ही सप्लायर बनते जा रहे हैं।

पुलिस और सरकारी जवाबदेहियों की कार्रवाई

नैशा नियंत्रण ब्यूरो, जो राष्ट्रीय नशा नियंत्रण ब्यूरो (NCB) के तहत काम करता है, ने कहा कि वे लगातार एनडीपीएस के तहत चौकसी बढ़ा रहे हैं। विशेष सर्पिल ऑपरेशन में 2025 में दिल्ली के विभिन्न स्थानों से 500 किलोग्राम से अधिक नशा बरामद किया गया।

कुल मिलाकर, 2025 में पाँच बड़े दवाओं के तस्करों के खिलाफ सजा सुनाई गई, जिसमें उनमें से दो को 10 साल तक की जेल और भारी जुर्माना निर्धारित किया गया। अधिकारी यह भी मानते हैं कि नशे के असर को कम करने के लिए पुनर्वास केंद्रों की संख्या दोगुनी करनी होगी।

समाज और स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर

समाज और स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर

अनुसंधान दर्शाता है कि नशा लेने वाले लोगों में सामाजिक बहिर्मुखीता घटती है, स्कूल तथा नौकरी में गिरावट आती है, और अपराध की दर में वृद्धि होती है। इसके अलावा, नशे के कारण उत्पन्न बीमारियों की लागत भारतीय स्वास्थ्य बजट का एक बड़ा हिस्सा बन रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार, नशा‑संबंधी रोगों के इलाज पर सालाना लगभग ₹5,200 करोड़ खर्च हो रहे हैं।

डॉ. कुमार ने यह भी कहा कि नशा छोड़ने के बाद भी मस्तिष्क में कई बार ‘रिवर्सिबल डैमेज’ नहीं होता, इसलिए शुरुआती रोकथाम ही सबसे असरदार उपाय है।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

भविष्य में नशे के प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. स्कूल‑कॉलेज स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम बढ़ाना
  2. पुनर्वास केंद्रों में न्यूरो‑रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम जोड़ना
  3. क़ानूनी फ्रेमवर्क को सख़्त बनाकर छोटे‑बड़े तस्करों को कड़ी सजा देना
  4. न्यूरोलॉजिकल स्क्रीनिंग को नियमित डॉक्टर‑चेक‑अप में शामिल करना

एक बार फिर डॉ. अनिल कुमार ने कहा, “समय आ गया है कि हम नशे के इस जाल को तोड़ें, नहीं तो अगली पीढ़ी के दिमाग़ पर इसका स्थायी निशान रहेगा।”

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्रिस्टल मेथ के सेवन से सबसे पहले कौन‑सी लक्षण दिखते हैं?

शुरुआत में अत्यधिक ऊर्जा, तेज़ दिल की धड़कन और दवाब में बढ़ोतरी महसूस होती है। कुछ ही घंटों में डोपामाइन स्राव घट जाता है, जिससे थकान, चिड़चिड़ापन और नींद में गड़बड़ी आती है।

एलएसडी लेने से मस्तिष्क में कौन‑से परिवर्तन होते हैं?

एलएसडी मस्तिष्क के सेरोटोनिन रिसेप्टर को सक्रिय करता है, जिससे वास्तविकता का अभाव, भ्रम और पैनिक अटैक होते हैं। गंभीर मामलों में व्यक्ति कोमा या स्थायी स्मृति हानि का शिकार भी हो सकता है।

नैशा नियंत्रण ब्यूरो ने अब तक कौन‑से प्रमुख कदम उठाए हैं?

NCB ने 2025 में पाँच बड़े तस्करों के खिलाफ सजा सुनाई, 500 किलोग्राम से अधिक नशा जब्त किया और स्कूल‑कॉलेज में जागरूकता अभियान तेज़ किया। उन्होंने एनडीपीएस के तहत बड़े पैमाने पर निरीक्षण भी शुरू किया है।

क्या नशा छोड़ने के बाद पूरी तरह ठीक होना संभव है?

काफी मामलों में न्यूरॉनल क्षति अपरिवर्तनीय रहती है, इसलिए पुनर्वास के दौरान विशेषज्ञों की निगरानी और न्यूरो‑रिहैबिलिटेशन आवश्यक है। शुरुआती चरण में वक़्त के साथ कुछ क्षमता वापस आ सकती है, पर पूरी तरह से पूर्व अवस्था में लौटना कठिन है।

समाज को नशे के ख़तरे से बचाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?

स्कूल में नशा‑विरोधी शिक्षा, परिवार में संवाद बढ़ाना, चाहते‑वर्तमान में नशा‑सहायता केंद्रों का विस्तार और क़ानूनी कार्रवाई को सख़्त बनाकर नशे के प्रसार को कम किया जा सकता है। सार्वजनिक जागरूकता ही सबसे बड़ा रोकथाम उपाय है।

टिप्पणि

  • Suresh Chandra Sharma

    अक्तूबर 6, 2025 AT 04:43

    Suresh Chandra Sharma

    क्रिस्टल मेथ से दिमाग की ग्रे मैटर घटती है, इसलिए यकीनन बचना चाहिए।

  • sakshi singh

    अक्तूबर 6, 2025 AT 05:33

    sakshi singh

    डॉ. कुमार ने जो तथ्य सामने रखे हैं, वो वास्तव में हमें गहरी सोच में डालते हैं। पहले तो यह समझना आसान होता है कि नशा सिर्फ एक ‘मस्ती’ या ‘फुर्सत’ की बात है, लेकिन जब हम इसे लगातार उपयोग में देखते हैं, तो उसके दिमागी नुक़सान स्पष्ट हो जाते हैं।
    उदाहरण के तौर पर, क्रिस्टल मेथ की वजह से डोपामीन की तेज़ी से बढ़ोतरी होती है, जिससे शुरुआती कई घंटे ऊर्जा और उत्साह से भर जाता है। परन्तु इस उत्साह का अंत देखना भी जरूरी है, क्योंकि जैसे‑जैसे समय बीतता है, वह डोपामीन तेजी से घट जाता है और नशे की लत लगना शुरू हो जाता है।
    एलएसडी के बारे में भी कहा गया कि यह सेरोटोनिन रिसेप्टर को सक्रिय करता है, जिससे वास्तविकता का अभाव और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। यह केवल एक क्षणिक ‘हॉलुसिनेशन’ नहीं, बल्कि दीर्घकालिक उपयोग में न्यूरॉनल क्षति का कारण बन सकता है। जैसा कि अध्ययन में बताया गया, लगातार मेथ लेने वाले व्यक्तियों में ग्रे मैटर वॉल्यूम में औसतन 12 % की कमी देखी गई है। यह आँकड़ा स्वयं में एक चेतावनी है कि हमारे न्यूरॉन्स धीरे‑धीरे क्षीण हो रहे हैं।
    नशे के कारण न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक जीवन भी बुरी तरह प्रभावित होता है। युवाओं में पढ़ाई‑काम में गिरावट, नौकरी में कमी, और अपराध दर में वृद्धि स्पष्ट रूप से देखी जा रही है।
    साथ ही, इन नशे की लत के कारण स्वास्थ्य बजट पर अतिरिक्त भार पड़ेगा, जैसा कि WHO के आँकड़ों में स्पष्ट है कि नशा‑संबंधी रोगों पर लगभग ₹5,200 करोड़ खर्च हो रहे हैं। इसलिए सरकार को नशा‑नियंत्रण के साथ-साथ पुनर्वास एवं न्यूरो‑रिहैबिलिटेशन पर भी अधिक ध्यान देना चाहिए।
    नशा‑विरोधी जागरूकता कार्यक्रमों को स्कूल‑कॉलेज स्तर पर बढ़ाना आवश्यक है, क्योंकि बचपन से ही शिक्षा और समझदारी विकसित करने से ही यह जाल तोड़ा जा सकता है। अंत में, मैं यह जोड़ना चाहूँगा कि एक व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को समझना, जैसे कि अपने आराम और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना, भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार हम सभी मिलकर इस सामाजिक बुराई को कम कर सकते हैं और स्वस्थ भविष्य की नींव रख सकते हैं।

  • Hitesh Soni

    अक्तूबर 6, 2025 AT 06:40

    Hitesh Soni

    साक्ष्य आधारित वैज्ञानिक तथ्यों की उपस्थिति के बावजूद, आपके द्वारा प्रस्तुत परिणामों में कई दायरे में अतिउत्कीर्णता देखी जाती है। यह अति-आलोचनात्मक दृष्टिकोण न केवल पुनर्वास की आवश्यकता को कम आँकता है, बल्कि नशे के सामाजिक कारणों को भी नज़रअंदाज़ करता है। प्रस्तुत आँकड़ों की वैधता पर प्रश्नचिह्न लगाना उचित है, क्योंकि कई स्रोतों ने समान अध्ययन में अलग‑अलग प्रतिशत दर्शाए हैं। अतः यह आवश्यक है कि हम एक निरपेक्ष एवं समतापूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत करें, न कि केवल डराने‑धमकाने वाले आँकड़े।

  • rajeev singh

    अक्तूबर 6, 2025 AT 07:46

    rajeev singh

    डॉ. कुमार के शोध में दर्शाए गए सामाजिक प्रभावों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि नशा केवल व्यक्तिगत विकल्प नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एवं सामाजिक कारकों से जुड़ा हुआ है। हमारे पारम्परिक मूल्य और सामुदायिक बंधन इन समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ युवा आसानी से नशे के जाल में फँसते हैं, वहाँ सामुदायिक चेतना और स्थानीय नेतृत्व को सशक्त बनाना अत्यावश्यक है। यह कदम न केवल नशा‑संबंधी अपराध को घटाएगा, बल्कि भविष्य की पीढ़ी के लिए स्वस्थ माहौल भी स्थापित करेगा।

  • ANIKET PADVAL

    अक्तूबर 6, 2025 AT 08:53

    ANIKET PADVAL

    हमारी राष्ट्रीय एकता और नैतिक मूल्यों को देखते हुए, इस प्रकार के नशे‑जाल को नष्ट करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है; न केवल वैद्यकीय दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक नैतिकता के आधार पर भी इस खतरे का कड़ा विरोध आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि क्रिस्टल मेथ व एलएसडी जैसे पदार्थ हमारे राष्ट्र की शालीनता को गहरा नुकसान पहुँचाते हैं, और इस हेतु कड़ी सज़ा तथा व्यापक सामाजिक शिक्षा अनिवार्य है। इसलिए, हमें न केवल कानून को सख़्त बनाना चाहिए, बल्कि आत्मनिर्भरता एवं राष्ट्रीय गौरव की भावना को भी जागरूक करना होगा, जिससे यह अभिशाप जारी न रहे।

एक टिप्पणी लिखें

समान पोस्ट