ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और आध्यात्मिक महत्व
आहॉई अष्टमी का उद्गम प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है, जहाँ कथा है कि एक माँ ने अपने नवजात शिशु को बचाने के लिये रात्रि तक जल नहीं पी कर व्रत रखा और माँ की पुकार सुनकर आहॉई माता ने शिशु को बचा लिया। यह घटना मातृ भाव की शक्ति को दर्शाती है और साथ ही माता‑पुत्र (या माता‑पुत्री) के बीच के अडिग बंधन को सुदृढ़ करती है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य बच्चे के भविष्य की रक्षा, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना है।व्रत का त्यौहारी समय‑सारिणी 2025
- सूर्योदय पर व्रत प्रारम्भ – लगभग 06:12 AM
- पूरे दिन जल व भोजन का परित्याग – दिन भर
- वैधु समय (पूजा का सर्वोत्तम समय) – 05:53 PM से 07:08 PM IST (१ घंटा १५ मिनट)
- व्रत समाप्ति – तारा दृष्टि के बाद लगभग 06:17 PM IST

पूजा विधि और प्रमुख अनुष्ठान
पूजा की शुरुआत घर की मुख्य दालान में सफेद कपड़े बिछाकर की जाती है। माँ अपने हाथ धोती है, फिर आहॉई माता की मूर्ति या चित्र के सामने चंदन और हल्दी लगा कर अभिषेक करती है। फिर चार ताबे (गुड़, चावल, काबुली चने और नारियल) को सात कपड़ों में रखकर अर्पित किया जाता है। अंत में 108 बार उत्तरनारी मंत्र का जप किया जाता है। इस अनुष्ठान के बाद वैधु समय के भीतर दीप जलाकर प्रार्थना की जाती है।“मैं हर साल इस व्रत को पूरी निष्ठा से रखती हूँ, क्योंकि आहॉई माता का आशिर्वाद मेरे बच्चों की पढ़ाई में दिखता है,” बताती हैं शैलजा वर्मा, नई दिल्ली की एक गृहिणी। उन्होंने कहा कि यह व्रत उन्हें मन के शांति और परिवारिक सौहार्द का अहसास कराता है।
समकालीन समझ और सामाजिक प्रभाव
पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर आहॉई अष्टमी का कवरेज तीव्रता से बढ़ा है। इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर #AhoiAshtami के तहत 2 मिलियन से अधिक पोस्ट देखी गई हैं। युवा माताओं ने व्रत के दौरान पोषण संबंधी सुझाव, जैसे कि उपवास के दौरान हल्के फलों का सेवन, साझा किया है, जिससे स्वास्थ्य‑सुरक्षा की नई धारा झलकती है। साथ ही, कई NGOs ने इस अवसर को लेकर बाल स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए, जिसमें पोषण पर जागरूकता और टीकाकरण के बारे में जानकारी दी गई।
भविष्य की प्रवृत्तियाँ और विशेषज्ञ दृष्टिकोण
डॉ. विष्णु राव, इतिहास एवं समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर, कहते हैं, “आहॉई अष्टमी परम्परा में लिंग‑समता की दिशा में एक स्पष्ट बदलाव देखा जा रहा है। जहाँ पहले केवल पुत्र को ही सुरक्षित माना जाता था, अब सभी बच्चों को समान रूप से संरक्षित करने की भावना प्रमुख है।” उन्होंने आगे कहा कि यदि इस प्रवृत्ति जारी रही तो आगामी दशकों में इस व्रत को राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र मातृ‑सुरक्षा दिवस के रूप में भी मान्यता मिल सकती है। साथ ही, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो उपवास के दौरान शरीर में डिटॉक्सिफिकेशन प्रभाव हो सकता है, परंतु दीर्घकालिक उपवास के जोखिमों को देखते हुए मेडिकल सलाह लेना आवश्यक है। इस कारण, कई स्वास्थ्य संस्थान ने इस वर्ष व्रत रखती महिलाओं के लिए हल्के आहार विकल्पों की सिफ़ारिश की है।- Key Facts
- तारीख: 13 अक्टूबर 2025 (कार्तिक माह कृष्ण अष्टमी)
- वैधु समय: 05:53 PM – 07:08 PM IST
- व्रत समाप्ति: लगभग 06:17 PM IST (तारा‑दृष्टि)
- प्रमुख अनुष्ठान: चंदन‑अभिषेक, 108‑मंत्र जप, दीप‑पूजा
- उपस्थित माताएँ: अनुमानित 1.2 crore (2025)
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आहॉई अष्टमी से कौन‑से समूह सबसे अधिक प्रभावित होते हैं?
मुख्यतः माताओं और उनके बच्चों का समूह इस पर्व से सबसे अधिक प्रभावित होता है, क्योंकि यह व्रत और पूजा मातृ‑सुरक्षा पर केंद्रित है। साथ ही, उत्तर भारत के ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में इस दिन घर‑परिवार के मिलन‑समारोह होते हैं।
व्रत का सही समय कैसे निर्धारित किया जाता है?
व्रत का प्रारम्भ सूर्योदय के समय होता है, जबकि समाप्ति तारा दृश्यमान होने पर तय होती है। पंचांग में दर्शाए गए वैधु समय (05:53 PM – 07:08 PM) को सबसे अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इस अवधि में रात्रि‑तारा की पहली झलक मिलती है।
क्या इस वर्ष व्रत में कोई विशेष बदलाव है?
2025 में व्रत की अवधि पहले की तुलना में 15 मिनट अधिक है, क्योंकि आयुर्विज्ञान की सलाह के अनुसार कई महिलाएँ हल्के पोषक तत्वों को शामिल कर रही हैं। साथ ही, इस साल कई राज्यों में बच्चों के स्वास्थ्य शिविर और आहॉई मां के नाम पर दान कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
आहॉई अष्टमी का दीवाली और करवा चौथ से क्या संबंध है?
आहॉई अष्टमी करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद पड़ती है और दीवाली से लगभग आठ दिन पहले आती है। इन तीनों पर्वों का सामान्य मोड़ यह है कि सभी माँ‑बच्चे के बंधन, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना को दर्शाते हैं, इसलिए अक्सर इनका सामूहिक रूप से उल्लेख किया जाता है।
व्रत समाप्ति के बाद कौन‑से पारम्परिक पकवान बनाए जाते हैं?
व्रत तोड़ने के बाद अक्सर अळू व सैंफेद (सुनहली) के साथ मीठी खीर, काली दाल और चपाती परोसी जाती है। कुछ परिवार में हलके फलों की सलाद और नारियल पानी भी तैयार किया जाता है, जिससे उपवास के बाद शरीर को ऊर्जा मिलती है।
अक्तूबर 14, 2025 AT 00:12
Naman Patidar
अहा, फिर से वही पुरानी व्रत की बातें।