पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की तस्वीर
2022 2022 उत्तर प्रदेश विधायक चुनाव के दौरान पश्चिमी यूपी, यानी मुजफ्फरनगर से लेकर वृंदावन‑मथुरा तक, एक जटिल राजनीतिक जलसेना बन गया। इस क्षेत्र में जाट किसान समुदाय का प्रभाव बहुत अधिक है, और उनके किसान आंदोलन ने चुनावी रणनीति को नया मोड़ दिया। मुजफ्फरनगर में 2013 के दंगे की स्मृतियाँ अभी भी अक्सर बहस के विषय बनती हैं, जिससे धार्मिक एवं जातीय भावनाओं का मिश्रण वोटों को प्रभावित करता है।
आरएलडी ने इस हिस्से में अपने मुख्य आधार को मजबूत रखने के लिए शमली, थाना भवानी, बुढ़ाना, सिवालखास और चापरौली जैसे जाट‑बहुल जिलों में गठबंधन किया। इन सभागृहों में जाट किसानों के खेतों में कब्जा और टाक्सी बॉटलन जैसी समस्याएं बड़ी थी, इसलिए वह दल के वादे सीधे उनकी ज़रूरतों से जुड़े थे। इस वजह से आरएलडी ने कुल आठ सीटें जीतीं, जिनमें से अधिकांश पश्चिमी जिले में ही शामिल थीं।
दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी (एसपी) ने कई शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की। कैराना, सरधना, चारथावाल और साहारनपुर जैसे क्षेत्रों में एसपी की जीत ने दिखाया कि वह सिर्फ जमींदारी वर्ग नहीं, बल्कि विविध सामाजिक वर्गों को भी अपने साथ लाने में सक्षम था। साहारनपुर, जहाँ पूर्व में रशीद मसूद का प्रभाव था, एसपी के लिए एक प्रतीकात्मक जीत बन गया।

आरएलडी‑एसपी का प्रदर्शन और बीजेपी की जीत
फेज‑1 की गिनती में, जहाँ पश्चिमी यूपी के बहुसेनटी हिस्से शामिल थे, बीजेपी ने अपनी रणनीति को सबसे तेज़ी से लागू किया। औसत जीत का अंतर 20.7% था, जो एसपी‑आरएलडी गठबंधन के 7.3% से काफी आगे था। इस अंतर का मुख्य कारण दो‑स्तरीय ध्रुवीकरण था: एक ओर किसानों को संतुष्ट करने की कोशिश, और दूसरी ओर साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काकर वोट आकर्षित करना।
बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों को स्थानीय मुद्दों, जैसे बिजली की अनिश्चितता, पीपीएफ (प्रेसर प्लांट) के लिए जमीन अधिग्रहण, और सड़क विकास पर केंद्रित किया। साथ ही, उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर की गई 'किसान आंदोलन' को स्थानीय स्तर पर पार्टी के एजेंडा के तहत प्रस्तुत किया, जिससे कई जाट वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। परिणामस्वरूप, कई उन क्षेत्रों में जहाँ पहले आरएलडी या एसपी का दबी हुआ प्रभाव था, वह पार्टी ने अपना ठोस समर्थन प्राप्त किया।
आरएलडी की जीत के प्रमुख कारणों में जाट सामाजिक संगठनों के साथ सहयोग, जमींदार वर्ग के साथ जुड़ी नीति, तथा स्थानीय स्तर पर किसान विरोधों के दौरान उनका सक्रिय समर्थन शामिल था। इस ने उन्हें एक मजबूत वैकल्पिक आवाज़ के रूप में स्थापित किया, जो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके।
समग्र रूप से देखा जाए तो पश्चिमी यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण, किसान मुद्दे और साम्प्रदायिक भावनाओं का मिश्रण ही चुनावी परिणाम को तय करता रहा। इस मिश्रण ने मतदान को दो मुख्य ध्रुवों में बाँट दिया: एक पक्ष में भाजपा‑समर्थक वोटर और दूसरा पक्ष में आरएलडी‑एसपी के समर्थक। अंततः, इस जटिल समीकरण ने भाजपा को राज्य में 255 में से 403 सीटें जीतने में मदद की, जबकि आरएलडी और एसपी ने अपने‑अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण टिकाव बनाए रखा।