मैच का फ्लो: भारत जीत गया, चर्चा ओमान की
स्कोरकार्ड कहेगा भारत जीता, पर स्टेडियम से बाहर जिस टीम की सबसे ज़्यादा बातें हो रही थीं, वह थी ओमान। एशिया कप 2025 के 12वें मुकाबले में भारत ने दो अंक तो संभाले, लेकिन ओमान ने जिस साहस से खेलते हुए मुकाबले को आखिरी ओवर तक जिंदा रखा, उसने इस टूर्नामेंट की धार पूरी तरह बदल दी। यह वही तरह का मैच था जो बड़े नामों को हिला देता है और छोटे नामों को बड़ी पहचान देता है।
भारत ने पहले बल्लेबाजी की शुरुआत संजू सैमसन और अभिषेक शर्मा से की। शुरुआती ओवरों में दोनों ने पिच को परखा, गैप निकाले और बेवजह रिस्क नहीं लिया। 22/1 के स्कोर तक पहुंचते ही रफ्तार बढ़ी—सैमसन ने चौथे ओवर में शाह फैसल के खिलाफ कदम आगे बढ़ाए, लेग-साइड की तरफ एक जोखिमभरा शॉट खेला, फिर लॉन्ग-ऑन की तरफ स्मार्ट ड्राइव से दो रन बटोरे और स्कोर 30 तक ले गए। इस बीच अभिषेक ने अपने नैचुरल गेम को रोके रखा—कट, सिंगल-डबल और गेंद को देर से खेलना।
ओमान के कप्तान जतिंदर सिंह लगातार बदलाव करते रहे। मोहम्मद नदीम को आक्रमण पर लाना उसी बेचैनी का संकेत था जो भारत जैसी टीम के खिलाफ शुरुआती ब्रेकथ्रू की तलाश में दिखती है। पर यह साझेदारी टूटने में वक्त लगा। भारत ने 6 से 8 रन प्रति ओवर की रफ्तार पकड़ी और मिडिल ओवर्स तक एक स्वस्थ प्लेटफॉर्म तैयार किया, ताकि बाद में पावर-हिटिंग की गुंजाइश बन सके।
भारत के मिडिल ऑर्डर ने यहां से छोटे-छोटे पर अहम योगदान दिए। यह वैसा दिन नहीं था जहां कोई एक बल्लेबाज़ 80-90 में खेलकर मैच खत्म कर दे। स्ट्राइक रोटेशन, बीच-बीच में सीमा-रेखा लांघने वाले शॉट्स और आख़िर में कुछ तेज रन—कुल मिलाकर भारत एक प्रतिस्पर्धी स्कोर तक पहुंचा, जो कागज़ पर सुरक्षित दिखता था, पर मैदान पर उतना आसान साबित नहीं हुआ।
चेज़ की शुरुआत में ओमान ने वही किया जो बड़े अपसेट्स की शुरुआती शर्त होती है—डर नहीं दिखाया। कप्तान जतिंदर सिंह ने 32 रन जोड़कर टोन सेट किया। कुलदीप यादव ने नौवें ओवर में गति और उछाल के मेल से उन्हें चकमा दिया—इनसाइड-एज, गेंद स्टंप्स से टकराई और स्कोर 56/1। यह विकेट मैच का पहला बड़ा मोड़ था, क्योंकि इससे पहले भारत की बॉडी लैंग्वेज में थोड़ी टेंशन नजर आने लगी थी।
यहीं से हमद मिराज़ा ने कमान संभाली। 33 गेंदों पर 51—यह सिर्फ आक्रामक नहीं, समझदारी से भरा अर्धशतक था। स्वीप, स्कूप, और कवर के ऊपर से क्लीन स्ट्राइक—मिराज़ा ने स्पिन के खिलाफ अपनी रेंज दिखाई। उन्होंने रनिंग के जरिए भारतीय क्षेत्ररक्षकों पर दबाव बनाया और गेंदबाजों को उनकी लेंथ से बाहर खींचा।
लेकिन असली धमाका आमिर कलीम ने किया। 64 रन, सात चौके, दो छक्के—वह भी बिना किसी हड़बड़ी के। कलीम ने दिखाया कि बड़े मैच में क्लीन हिटिंग कैसी दिखती है। उन्होंने पेस के खिलाफ पावर और स्पिन के खिलाफ स्वीप-इनसाइड-आउट का कॉम्बिनेशन अपनाया। भारत ने लंबे समय तक बाउंड्री रोककर रखने की कोशिश की, पर कलीम ने हर ओवर में एक बड़ा शॉट निकालकर रन-रेट को नियंत्रण में रखा।
भारत के लिए राहत की सबसे बड़ी वजह रहे कुलदीप यादव। उनके लिए यह मैच करियर-मील का पत्थर बना—टी20 इंटरनेशनल में 100वां विकेट और इस आंकड़े को छूने वाले पहले भारतीय गेंदबाज। यह उपलब्धि सिर्फ संख्या नहीं, भरोसे का प्रतीक है कि दबाव में भी वह झुके नहीं। उनका स्पेल ओवर-टू-ओवर मैच को पकड़ में लाने का मार्ग था—गति में सूक्ष्म बदलाव, गुगली की टाइमिंग और फील्ड सेटिंग की सटीकता।
स्पिन के साथ-साथ अनुभव ने काम किया। अश्विन सिंह ने बीच के ओवरों में अहम ब्रेकथ्रू दिए। उन्होंने पार्टनरशिप्स को लंबा नहीं होने दिया—यह वही छोटे-छोटे वार थे जिनके बिना आख़िरी ओवरों में जीत का समीकरण इतना तंग नहीं होता। भारत की डेथ-ओवर योजना का असली टेस्ट तब हुआ जब आमिर कलीम सेट हो चुके थे। 18वें ओवर में हर्षित राणा ने शांति नहीं छोड़ी—हार्ड लेंथ, ऑफ-स्टंप से बाहर जाती गेंद और फिर कलीम का ऊंचा शॉट—हार्दिक पंड्या ने सीमारेखा पर कैच लपका और भारत ने राहत की लंबी सांस ली।
इसके बाद भी ओमान झुका नहीं। निचला क्रम रन चुराता रहा, मिस-हिट्स से भी दो-दो बने, और मैच आखिरी ओवर तक जीवित रहा। यही ओमान की कहानी है—स्किल के साथ इरादा। वे बड़े नामों से नहीं, अपनी गति से मैच को मोड़ते रहे।

रणनीति, गलतियां और आगे का रास्ता
यह मैच कई परतें खोलता है। पहली—भारत की टॉप-ऑर्डर एप्रोच। सावधानी ठीक है, लेकिन पावरप्ले में बाउंड्री प्रतिशत कम रहने से मिडिल ओवर्स पर दबाव आता है। सैमसन-अभिषेक की साझेदारी ने पिच पढ़कर खेला, पर भारत को ऐसे दिनों के लिए भी प्लान चाहिए जब बॉल ग्रिप करे या नई गेंद सीम करती दिखे। पावरप्ले में एक अतिरिक्त आक्रामक विकल्प या फ्लोटिंग बल्लेबाज इस गैप को भर सकता है।
दूसरी—ओमान की हाई-परसेंटेज हिटिंग। कलीम और मिराज़ा ने वह जोन चुना जहां बाउंड्री की संभावना सबसे ज्यादा थी—काउनर और मिडविकेट की दरम्यानी पट्टी। उन्होंने एक-एक ओवर में एक बड़ा शॉट निकालकर स्ट्राइक-रेट को टिकाए रखा ताकि निचले क्रम को बहुत भारी समीकरण न मिले। यह वही स्कूल है जो आधुनिक टी20 का मेरुदंड है—लंबी पारियों के बजाय फेज-वार प्रभाव।
तीसरी—स्पिन बनाम स्वीप। कुलदीप की गुगली और स्लोअर लूप को ओमान के बल्लेबाजों ने स्वीप-रिवर्स स्वीप से काउंटर किया। भारत ने फाइन लेग और डीप प्वाइंट की पोजिशनिंग बदलकर इसका जवाब दिया, पर एक-दो ओवर ऐसे गए जहां फील्डिंग रिंग में जगह निकलती रही। यहां पर गेंदबाज-फील्डर सिंक को और तेज़ करना होगा, खासकर उस वक्त जब दूसरी टीम प्री-मेड शॉट मैप के साथ उतरती है।
भारत की फील्डिंग आम दिनों की तरह धारदार नहीं दिखी। एक आधी-चांस कैच टला, एक गलत थ्रो से बाउंड्री बन गई, और दो मौकों पर मिसफील्ड से रन-रेट खिसका। टी20 में ऐसी छोटी गलतियां मैच को आखिरी ओवर तक खींच लाती हैं। अच्छी बात यह रही कि हार्दिक का दबाव में कैच और डेथ-ओवर्स में यॉर्कर की कोशिशें काम आईं, वरना कहानी अलग भी हो सकती थी।
ओमान के लिए यह मैच इतिहास नहीं, दिशा है। उन्होंने दिखाया कि छोटे संसाधनों के साथ भी बड़े मंच पर मैच मैनेजमेंट कैसे किया जाता है—पावरप्ले में नुकसान कम, मिडिल ओवर्स में जोखिम को बांटकर लेना, और डेथ में सेट बल्लेबाज से अधिकतम निकालना। कलीम-मिराज़ा की जोड़ी ने युवा खिलाड़ियों को टेम्पलेट थमाया—साफ़ दिमाग, साफ़ शॉट्स, और साफ़ कम्युनिकेशन।
भारत के नजरिए से इसे “वेक-अप कॉल” कहिए। टूर्नामेंट लम्बा है और नॉकआउट्स में ऐसे दिन दोहराए नहीं जा सकते। टीम मैनेजमेंट को यहां से तीन स्पष्ट टु-डू दिखते हैं: पावरप्ले का बाउंड्री रेट बढ़ाना, स्पिन-टू-स्पिन मैच-अप्स में वैरिएशन लाना, और डेथ ओवर्स में दूसरी गेंदबाजी योजना तैयार रखना, ताकि अगर हार्ड लेंथ काम न आए तो स्लोअर-यॉर्कर/राउंड-द-विकेट एंगल तुरंत लागू हो सके।
अब तालिका पर असर? भारत ने दो अंक जेब में डाले, नेट रन रेट पर हल्का असर महसूस होगा, पर असल मायने मनोविज्ञान में हैं। लॉकर-रूम में सभी जानते हैं कि यह जीत उतनी सहज नहीं थी। अच्छी टीमें अपने “करीब-करीब फिसले” मैचों को टेप पर बार-बार देखती हैं और वहीं से अगले मैच की रणनीति बनाती हैं।
ओमान की सबसे बड़ी कमाई सम्मान है। दर्शकों ने अंत में खड़े होकर जिस तरह तालियां बजाईं, वह बताता है कि क्रिकेट में नाम से ज्यादा मायने दिन का खेल रखता है। यह भी साफ है कि एशिया की उभरती टीमें अब सिर्फ भाग लेने नहीं आतीं; वे बड़े को हराने निकलती हैं। टूर्नामेंट में आगे जाने के लिए ओमान को यही टेम्पो बनाए रखना होगा—पावरप्ले में विकेट बचाने का अनुशासन और डेथ में दो सेट बल्लेबाजों का होना।
कुलदीप की करिश्माई शाम से एक बात और निकलती है—भारतीय स्पिन अब भी मैच-डिफाइनिंग है, बस सपोर्ट एक्ट को लगातार ट्यूनिंग चाहिए। अश्विन सिंह की अनुभवजन्य गेंदबाजी ने यह ट्यूनिंग दी; अगली कड़ी है फील्डिंग-एलाइनमेंट को हर ओवर के हिसाब से मैच करना। डेथ में हर्षित राणा का संयम भविष्य का संकेत है—नए चेहरे दबाव में अगर इस तरह फैसले ले रहे हैं, तो टीम का बॉलिंग बेंच और भरोसेमंद दिखेगा।
मैच के 5 टर्निंग पॉइंट्स? इस तरह समझिए:
- कुलदीप यादव का नौवें ओवर में जतिंदर सिंह को आउट करना—ओमान की शुरुआती धार टूटी।
- हमद मिराज़ा का 51—मिडिल ओवर्स में रन-रेट को टिकाए रखने वाली बेस-इन्निंग।
- आमिर कलीम का 64—चेज़ को पहुंच के भीतर रखे रखा, भारत पर असली दबाव यहीं बना।
- 18वें ओवर में हर्षित राणा की योजना—हार्ड लेंथ/लार्जर एंगल्स और हार्दिक का सीमारेखा पर कैच।
- डेथ में भारत की फील्डिंग और बॉलिंग डिसिप्लिन—वाईड/नो-बॉल से बचकर मैच को नियंत्रित किया।
टूर्नामेंट के बड़े संदर्भ में यह मुकाबला जरूरी था। इससे एक धुंध साफ होती है—“छोटी” टीम अब मिथक है। टी20 में 40 अच्छी गेंदें और 25 साफ़ शॉट्स आपकी दुनिया बदल देते हैं। यही वजह है कि Asia Cup 2025 जैसे प्लेटफॉर्म पर एसोसिएट टीमों की मौजूदगी सिर्फ विस्तार नहीं, खेल का असली विकास है। नई टीमों को गुणवत्ता वाली विपक्ष मिल रही है, और बड़े बोर्ड्स को अपनी योजनाओं की सच्चाई हर दूसरे दिन जांचनी पड़ रही है।
भारत के फैंस के लिए यह जीत भरोसा भी है और सबक भी। भरोसा—कि टीम दबाव में बचाव का रास्ता निकाल लेती है। सबक—कि किसी भी दिन, किसी भी कोने से कोई कलीम, कोई मिराज़ा आपकी स्लीट को खुरच सकता है। अगली बार टॉस से लेकर डेथ तक हर माइक्रो-फैसला मायने रखेगा। ओमान के फैंस के लिए यह रात एक वादा है—यह टीम सिर्फ दिल नहीं जीतती, मैच भी जीत सकती है। मौका मिला, तो स्कोरकार्ड भी उनकी कहानी लिखेगा।
सितंबर 20, 2025 AT 20:05
Sivaprasad Rajana
मैच का मुख्य सीख यह था कि भारत ने शुरुआती ओवरों में ठोस मंच बनाया, जबकि ओमान ने अंत तक झुके नहीं। इस तरह की स्थिति में बॉलरों को सटीक लाइन में रखना जरूरी है। स्पिनर को रेंज बदलते रहे तो फील्डर्स को भी बदलते रहना चाहिए। कुलदीप की गति और लम्बाई ने दबाव को झुकाया, जो हर टीम को अपनाना चाहिए। साथ ही, मिराज़ा का मिडिल ओवरों में जुगाड़ भी एक मॉडल है।