मनन चक्रवर्ती

लेखक

रूस-यूक्रेन विवाद में दखल देने का नया समझौता

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी आर्थिक मंच में कहा कि भारत, चीन और ब्राज़ील रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता में मध्यस्थता कर सकते हैं। उन्होंने इन देशों के नेताओं पर भरोसा जताते हुए कहा कि वे संवाद को बढ़ावा दे सकते हैं और दोनों पक्षों में समझौता कराने में सहयोगी साबित हो सकते हैं।

पपुतिन की प्रस्तावना

पुतिन ने यह प्रस्ताव व्लादिवोस्तोक में आयोजित पूर्वी आर्थिक मंच में दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी भविष्य की वार्ता उन समझौतों पर आधारित होनी चाहिए, जो मार्च 2022 में तुर्की में रूसी और यूक्रेनी वार्ताकारों के बीच हुए थे। पुतिन के अनुसार, उन समझौतों को इसलिए लागू नहीं किया गया क्योंकि पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को लड़ाई जारी रखने का निर्देश दिया।

मोदी की शांति की पहल

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जुलाई में रूस और अगस्त में यूक्रेन की यात्राओं के दौरान, दोनों पक्षों को वार्ता और कूटनीति के मार्ग पर लौटने का आग्रह किया। मोदी ने बल दिया कि रणभूमि पर समाधान नहीं मिल सकता और बंदूक की छाया में बातचीत सफल नहीं हो सकती।

इस दौरान, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने सुझाव दिया कि भारत दूसरी शांति सम्मेलन की मेजबानी कर सकता है, लेकिन इसके लिए नई दिल्ली को जून में स्विट्जरलैंड में आयोजित पहले शांति सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में हस्ताक्षर करना होगा।

भारत का संतुलित दृष्टिकोण

इस संकट पर भारत का दृष्टिकोण संतुलित रहा है। भारत ने रूस के आक्रमण की सार्वजनिक रूप से निंदा नहीं की और संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन से संबंधित प्रस्तावों पर अधिकतर अनुपस्थित रहा। इसके साथ ही, भारत ने रूस से छूट पर तेल और अन्य वस्तुएं खरीदने में वृद्धि भी की है। भारत के इस रुख को निरपेक्ष न होकर बल्कि शांति के पक्ष में माना जा रहा है।

पूर्वी आर्थिक मंच में आयोजित पैनल चर्चा में चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग और मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने भी भाग लिया। उन्होंने न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शांति की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे केवल रूस और यूक्रेन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भी लाभ हो सकेगा, क्यूंकि इस संघर्ष ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत, चीन और ब्राज़ील इस माध्यमिक भूमिका को लेकर कोई ठोस कदम उठाएंगे और कैसे वे वैश्विक मंच पर शांति की दिशा में अपनी भूमिका को सुनिश्चित करेंगे। इस प्रक्रिया में सफलता मिलने पर यह कदम विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

वैश्विक दृष्टिकोण से देखा जाए तो रूस और यूक्रेन के बीच का संघर्ष केवल दो देशों के बीच का नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव दुनियाभर की राजनीति, व्यापारिक श्रृंखलाओं और सुरक्षा स्थिति पर पड़ा है। ऐसे में शांति स्थापना की किसी भी पहल को व्यापकता से देखा जाना चाहिए।

आने वाले समय में, यदि इस तरह की वार्ता और मध्यस्थता की प्रक्रिया सफल होती है, तो यह निश्चित ही वैश्विक परिदृश्य पर सकारात्मक बदलाव ला सकती है और भविष्य में अन्य संघर्षों के समाधान में भी मिसाल के तौर पर काम आ सकती है।

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